Sunday, March 3, 2013

शिक्षा की उड़ान

उड़ने का चाव तो मुझमे भी था
खिलने की इच्छा से मैं भी मचली थी
पर मां ने तो सिखाया सिमटना ...
नज़र झुका कर, शब्दों को जी में दबा कर
दूसरों का आदर करना
मां की सीख को गाँठ बांध मैंने
अपने मन के उत्साह को हमेशा
मन में ही खामोश रखा
भईया को स्कूल जाते देख ललचाई थी मैं
पर सब ने समझाया लड़की का स्कूल तो चूल्लाह-चौका है
भईया तो काम पे जाएगा और पैसा कमेगा
पर तू तो सासरे जाएगी और रोटी बनाएगी
सीखी सिखाई मैं सासरे गई
सासु का मान और पति का ध्यान रखती गई
पर जो मैं एक चिट्ठी पढ़ने को कहि दू
या अपने नज़रिए को हल्का सा दर्शा दू
तो उन्पढ़ बोल फटकार मिले
पीहर की और देखू तो वो भी मूह फेरे
अपनाया तो था नहींअब पराया भी कर दिया
तो धीरे धीरे हर बेरुखी, हर धिक्कार सराना सीख लिया
पर सखी ज्ञानशाला आई तो एक उम्मीद दिलाई
मैं बोली के अब मैं खुद ही सीखू, हाँ थोड़ा तो झिझ्कायी
पति ने मारा, समाज ने डराया
पर शिखा सखी ने उत्साह बढाया
तोडती, मरोड़ती पर हर अक्षर लिखती
अटकती, फिसलती पर फिर कोशिश करती
पर अब जो मैं पढना सीख गई
तो मोहताजी से छूट गई
चिट्ठी भी पढू और बालक की किताब भी
किराने का सामान या ढूध का हिसाब भी
पीहर को जाओ और तहसील के ऑफिस भी
मान मिले और सम्मान भी
अब ना  ढून्ढू दूसरो में सहारा
खुद ही कर लू काम सारा
ये ख़ुशी जो आए, विश्वास झिलमिलाए
शिक्षा की रौशनी से, जीवन दमकाए

-              आपकी अपनी बिटिया

- Umang Sota


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